संविधान-निर्माताओं ने इस देश को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने का जो संकल्प कियाथा, क्या उसमें कहीं कोई मूलभूत कमी थी? क्या इस देश में विभिन्न धर्मोंके अनुयायी कभी मिलकर रहना नहीं सीख सकेंगे.
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आजादी के 65 साल बाद भी इस देश में जो मूलभूत कमी है अथवा हमारे राजनेताओ के द्वारा पैदा जान पड़ रही है, वह राष्ट्रीय चरित्र और राष्ट्रीय नेतृत्व की है।
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हमारे लोकतन्त्र (क्षमा कीजिएगा, मैं ‘ प्रजातन्त्र ' शब्द प्रयुक्त करने से बचता हूँ क्योंकि मुझे इसमें राजतन्त्र की गन्ध आती है) की मूलभूत कमी है-‘ लोकतन्त्र में लोक की भागीदारी न होना ।
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अब ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की विरासत को संस्थापित करना इसके विद्यमान होने में शासित प्रक्रिया तथा किस तरह यह विरासत लोगों से संबंधित है, के अतीत के हमारे ज्ञान, समझ तथा शायद रुचि में कुछ मूलभूत कमी हुई है जो सांस्कृतिक रूपों में व्यक्त इसके आविर्भाव औद्योगिक वृद्धि के युग में तेजी से बदल रही जीवन शैली में अपनी पारम्परिक महत्ता को खो रहे हैं ।